Tuesday, July 1, 2008

मंजिल भी उसकी थी,

रास्ता भी उसका था ,

एक मै ही अकेली थी ,

काफिला भी उसका था ...

साथ चलने की सोच भी उसकी थी ,

रास्ते बदलने का फ़ैसला भी उसका था...

आज क्यों अकेली हु ,

दिल सवाल करता है ,

लोग तो उसके थे ,

क्या खुदा भी उसका था...

4 comments:

kavideepakgupta said...

prayas karti raho
shubkamnayein

Unknown said...

aapki kavitayen padi.achha laga.gahrahi v hai.aap likhte rahen.

योगेन्द्र मौदगिल said...

निरन्तर प्रयासरत रहें

Pradeep Kumar said...

आज क्यों अकेली हु ,

दिल सवाल करता है ,

लोग तो उसके थे ,

क्या खुदा भी उसका था...

wah ! dil yoon hi jab tak sawaal kartaa rahega kavitaa banti rahegi . yahee to zindagi hai anwarat chalte rahnaa . kabhi kisi ka saath to kabhi tanhaa------